देश से चुन-चुनकर मिटाना चाहते हैं, उर्दू वाले नाम; सुप्रीम कोर्ट ने याची को दिया सॉलिड जवाब
Supreme Court Dismisses Renaming Commission PIL: सुप्रीम कोर्ट ने देश में उर्दू नाम वाले शहरों का नाम बदलकर प्राचीन, धार्मिक स्थलों के मूल नामों को बहाल करने के लिए ’नाम बदलने वाले आयोग’ के गठन के लिए दायर जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि देश इन मुद्दों से आगे निकल चुका है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आज उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें गुलामी को प्रतीक बताते हुए मुस्लिम नाम वाले स्थानों के नाम बदलने के लिए एक नामकरण आयोग बनाने का सरकार को आदेश देने की मांग की गई थी. कोर्ट ने कहा कि हिंदुत्व कोई मजहब नहीं है, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है. हिंदुत्व एक ऐसा विचार है, जिसने सबको स्वीकार किया है, यहां तक कि देश पर आक्रमण करने वाले आक्रमणकारियों को भी. कोर्ट ने कहा कि अतीत के ऐसे मसलो को मत कुरेदिये जो समाज में अशांति पैदा कर दे. ऐसे मसलों को हमेशा जिंदा नहीं रखा जा सकता है.
हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है और हिंदुत्व में कोई कट्टरता नहीं
जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका के मकसद पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यह उन मुद्दों को जीवंत करेगा, जो देश को उबाल पर रखेंगे.’’ पीठ ने कहा, “यह एक तथ्य है कि हमारे देश पर आक्रमण किया गया और एक विदेशी शक्ति द्वारा शासन किया गया. हम अपने इतिहास के चुने हुए हिस्से की कामना नहीं कर सकते हैं.’’ शीर्ष अदालत ने वकील अश्विनी उपाध्याय से कहा, ’हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है और हिंदुत्व में कोई कट्टरता नहीं है.’’
मुगल गार्डेन की तरह मिटा देना चाहते हैं सभी उर्दू नाम गौरतलब है कि वकील उपाध्याय ने इस महीने की शुरुआत में जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नाम बदलने वाले प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के मूल नामों को फिर से बहाल करने के लिए केंद्र को एक ‘नामकरण आयोग’ गठित करने का निर्देश देने की मांग की थी. याचिका में कहा गया था कि हाल ही में मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान कर दिया गया था, लेकिन सरकार ने आक्रमणकारियों के नाम पर सड़कों का नाम बदलने के लिए कुछ नहीं किया और कहा कि इन नामों को जारी रखना संविधान के तहत गारंटीकृत संप्रभुता और अन्य नागरिक अधिकारों के खिलाफ है.
आक्रमणकारियों के नाम बर्दाश्त नहीं
जनहित याचिका में कहा गया है कि वैकल्पिक रूप से, अदालत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को प्राचीन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों के प्रारंभिक नामों पर शोध करने और प्रकाशित करने का निर्देश दे सकती है, जिन्हें संविधान के तहत सूचना के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नाम दिया गया था. जनहित याचिका में कहा गया है, ’हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, लेकिन क्रूर विदेशी आक्रमणकारियों, उनके नौकरों और परिवार के सदस्यों के नाम पर कई प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धार्मिक स्थल आज भी मौजूद है, जिसे हटाया और बदला जाना चाहिए.’’
इन शहरों का बदलना चाहते हैं नाम अश्विनी उपाध्याय की याचिका में मांग की गई थी कि सरकार ‘पुनः नामकरण आयोग’ बनाये जो हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक विरासत वाले जगहों के असली नाम का पता लगाएं. याचिका में बेगूसराय, बिहार शरीफ, दरभंगा, हाजीपुर, जमालपुर, अहमदाबाद, होशंगाबाद, गाज़ियाबाद, फिरोजाबाद, फरीदाबाद, गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, मुजफ्फरपुर जैसी जगहों का हवाला दिया गया था.